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जिला इंटक अध्यक्ष कन्हैया सोनी ने कहा भारत मे श्रम कानून कामगारों और उद्योगों दोनों को एक व्यवस्थित ढाँचा देने का प्रयास करते हैं। लेकिन किसी भी बड़े कानून की तरह, इन नए श्रम कानून में भी कई कमियाँ और खामियाँ देखी जानी चाहिए, जिन पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।जटिल और तकनीकी प्रावधान नए लेबर लॉ कई कानूनी और प्रशासनिक शब्दों से भरे हुए हैं, जिन्हें समझना आम श्रमिकों के लिए कठिन है।जब कानून ही समझ में न आए, तो उसका पालन सही तरीके से होना मुश्किल हो जाता है।श्रमिकों की सुरक्षा में कमी की आशंका कुछ नई व्यवस्थाएँ कंपनियों को अधिक लचीलापन देती हैं,जैसे—छंटनी, काम के घंटे बढ़ाना, या कॉन्ट्रैक्ट वर्क में ढील।इससे श्रमिकों की नौकरी की सुरक्षा कमज़ोर पड़ सकती है।लागू करने वाली एजेंसियों की कमजोरीभारत में श्रम विभाग पहले से ही संसाधनों की कमी से जूझ रहा है।नए कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए अधिक निरीक्षण, प्रशिक्षित कर्मचारी और तकनीक की आवश्यकता होगी।यदि यह उपलब्ध नहीं है, तो कानून सिर्फ कागज़ों में सीमित रह जाएगा।फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट का दुरुपयोग कई विशेषज्ञों का मानना है कि फिक्स्ड टर्म रोजगार की अनुमति से कंपनियाँ स्थायी कर्मचारियों की जगह अस्थायी कर्मचारियों को अधिक रखेंगी।इससे नौकरी की स्थिरता, प्रमोशन और सामाजिक सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।संगठित क्षेत्र को अधिक लाभ, असंगठित क्षेत्र उपेक्षित भारत के लगभग 90% श्रमिक असंगठित क्षेत्र में कार्य करते हैं।नए श्रम कानून मुख्य रूप से औद्योगिक व संगठित क्षेत्रों पर केंद्रित दिखाई देते हैं,जिससे असंगठित कामगारों की समस्याएँ—जैसे न्यूनतम मजदूरी, स्वास्थ्य सुरक्षा, पेंशन—जैसी चुनौतियाँ पूरी तरह हल नहीं हो पातीं। काम के घंटों पर विवाद कुछ नए प्रावधानों में काम के घंटों को लचीला बनाने की बात की गई है।
हालाँकि यह उद्योगों के लिए लाभकारी है, लेकिन इससे
लंबे समय तक काम करने का दबाव बढ़ सकता है और श्रमिकों के स्वास्थ्य व पारिवारिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।सामाजिक व आर्थिक असमानता का खतरा नए नियमों का पालन बड़ी कंपनियाँ आसानी से कर सकती हैं,
लेकिन छोटे उद्योगों और दुकानों के लिए यह अतिरिक्त बोझ बन सकता है।इससे रोजगार के अवसर कम होने और वेतन में असमानता बढ़ने की संभावना रहता हैं।
निष्कर्ष -
नए श्रम कानून आधुनिक अर्थव्यवस्था की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाए जा रहे हैं,
लेकिन उनकी सफलता तभी सुनिश्चित होगी जब श्रमिकों की सुरक्षा, पारदर्शिता,
और व्यावहारिक लागू व्यवस्था को मजबूत किया जाए।
सरकार, उद्योग और श्रमिक—तीनों पक्ष मिलकर काम करें, तभी
नए श्रम कानून वास्तव में विकास और न्याय दोनों का संतुलन बना पाएँगे।
